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अमेरिका-भारत ट्रेड वार की घड़ी: समय की काट और भारत की रणनीति

India-US Tariff Trade War

भारत-अमेरिका व्यापार विवाद: हालात क्या है?

अप्रैल 2025 में अमेरिकी अधिनियम से लगभग 26% का “reciprocal tariff” लागू हुआ, जो भारत समेत दर्जनों देशों को प्रभावित कर रहा है। इसके पहले 10% की बेसल आदवलॉर शुल्क पहले से ही लागू थी। यह कदम उस अमेरिकी बजट अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करने की नीति का हिस्सा है। ट्रम्प प्रशासन ने इसे एक “राष्ट्रीय आपातकाल” की स्थिति बताते हुए लागू किया, ताकि व्यापार असंतुलन को ठीक किया जा सके।

भारत ने इस पर कड़ा विरोध जताया और अमेरिका के साथ एक अस्थाई व्यापार समझौते की मांग की, जिसमें सेस जैसे कृषि और मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों को प्रतिबंध से मुक्त रखा जाए। हालांकि, अमेरिकी पक्ष कृषि (विशेषकर डेयरी) और ऑटोमोटिव सेक्टरों में दाखिला चाहता है।

ब्रेकडाउन: इस व्यापार युद्ध की टाइमलाइन

  • 2 अप्रैल 2025: Trump सरकार ने “reciprocal tariffs” लगाकर 26% अतिरिक्त शुल्क लागू किया
  • एक 90-दिन की स्थगन अवधि भी घोषित की, जिसका अंत 9 जुलाई 2025 को होने वाला है।
  • अमेरिका ने पहले भी बेल्ट सहित, ब्रिटेन और चीन के साथ कुछ समझौते किए हैं, लेकिन भारत के साथ अभी तक कोई फाइनल समझौता नहीं हुआ ।

यदि भारत और अमेरिका यह समझौता 9 जुलाई तक नहीं कर पाते, तो यह अतिरिक्त शुल्क लागू हो जाएगा। वित्तीय बाजार इस तारीख को व्यापार वार्ता के निर्णायक मोड़ के रूप में देख रहे हैं।

भारत की रणनीति: संतुलन पर बल

नेपालिया आर्थिक डेटा के अनुसार, भारत लगातार अमेरिकी क्रूड ऑयल आयात बढ़ा रहा है, जिसमें अप्रैल 2025 में 120% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है: तकनीकी रूप से वह व्यापार घाटा कम करने का एक हिस्स है । हालाँकि, भारत ने रूस, सऊदी और इराक से तेल आयात लगभग 70% कम कर दिया, ताकि अमेरिका के साथ उसका $45 बिलियन का व्यापार घाटा संतुलित हो सके।

इसी तरह, भारत ने “Google टैक्स” जैसी कुछ करों को खत्म कर दिया और हार्ले‑डेविडसन जैसी अमेरिकी कंपनियों को राहत दी, ताकि समझौते की संभावनाएँ मजबूत हों । इस कूटनीति से संकेत मिलता है कि भारत व्यापार सुधार की दिशा में नरम रुख अपना रहा है।

Global Trade Research Initiative (GTRI) ने अमेरिका के कृषि आयात में छूट देने को भारत के किसान समुदाय और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बताया है । GTRI का कहना है कि अमेरिका के heavily subsidized कृषि उत्पाद भारतीय बाजार में सस्ते मिलेंगे, जिससे छोटे और मध्यम किसान प्रभावित होंगे।

उसी समय, Pharmaceuticals और autos जैसे उद्योगों पर भी निर्यात शुल्क का प्रभाव पड़ सकता है, जिससे उनके उत्पादन और रोजगार पर असर पड़ेगा।

आर्थिक प्रभाव: GDP, निवेश और बाजार की स्थिति

भारत के वित्‍त सचिव अजय सेठ ने बताया कि अमेरिकी शुल्क से भारत की GDP वृद्धि 0.2–0.5% तक प्रभावित हो सकती है। वहीं, Moody’s ने कहा कि भारत की बड़ी घरेलू अर्थव्यवस्था और कम घरेलू मांग पर निर्भरता उसे कई एशिया-प्रशांत देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में रखती है, इतना ही नहीं, Moody’s ने यह भी जोड़ दिया कि संभावित समझौते से भारत निवेशकों को आकर्षित कर सकता है और उसे एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने में मदद मिलेगी ।

Bloomberg Economics की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि दोनों देश समझौता करते हैं, तो अगले 10 वर्षों में भारत का अमेरिका निर्यात लगभग 64% बढ़ सकता है, और वस्तुओं का निर्यात दोगुना हो सकता है, जिससे GDP में 0.6% सुधार हुआ। इसके विपरीत, यदि नहीं किया, तो निर्यात में एक तिहाई गिरावट संभव है।

वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भारत की भूमिका

  • BIS (Bank for International Settlements) ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी शुल्क और आर्थिक टुकड़ों से वैश्विक वित्तीय बाजारों में बॉन्ड बाजारों में उथल-पुथल हो सकती है ।
  • Financial Times में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा अमेरिकी टैरिफ नीति ने परम-साप्ताहिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को अस्थिर कर दिया है और भविष्य में वैश्विक सहयोग की आवश्यकता बढ़ी है ।
  • Reuters के अनुसार जुलाई 9 से पहले कई देशों (UK, EU, जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया आदि) अमेरिका के साथ द्विपक्षीय समझौते करने की कवायद कर रहे हैं; भारत की बातचीत फिलहाल धीमी गति से आगे बढ़ रही है ।

चुनौतियां और अवसर

खेत से लेकर शहरी उद्योग तक

भारत को एक ओर अपने कृषि क्षेत्र की सुरक्षा करनी है, और दूसरी ओर टेक्स्टाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और फार्मा जैसे क्षेत्रों को अमेरिका में बेहतर पहुँच दिलानी है। GTRI ने स्पष्ट रूप से कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के कम कृषि आयात शुल्क छोटे किसानों के लिए “खाने की असुरक्षा” उत्पन्न कर सकता है ।

वहीं, अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की 10% या 26% शुल्क वृद्धि के बावजूद, अन्य देशों (जैसे चीन, वियतनाम, थाईलैंड) के मुकाबले उसकी स्थिति बेहतर है और वह अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक रूप से मजबूत बने रहेगा

विनिर्माण और निवेश का नया दौर

Moody’s ने संकेत दिया है कि भारत इस Tariff-Driven Supply Chain Shift का मुख्य लाभार्थी बन सकता है । इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, ऑटो पार्ट्स, और ईवी की मांग से भारत में निवेश आकर्षित होगा ।

Bloomberg की रिपोर्ट में कहा गया है कि टेक्सटाइल, लाइट मैन्युफैक्चरिंग जैसे सेग्मेंट्स में निर्यात बहुत बड़े स्तर पर बढ़ सकता है । साथ ही, iCET जैसे संयुक्त तकनीकी पहल (AI, क्वांटम, सेमीकंडक्टर) से भारत की तकनीकी क्षमता को भी बल मिलेगा।

आगे क्या हो सकता है?

भारत-वित्त मंत्री 9 जुलाई की समय सीमा से पहले किसी अंतरिम समझौते (interim deal) पर पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

कृषि-क्षेत्र में छूट, फार्मा एवं टेक्सटाइल को रक्षा, और टेक्नोलॉजी साझेदारी जैसे क्षेत्रों पर फोकस होगा।

अगर समझौता नहीं होता: भारत को भारी टैक्स का सामना, GDP में गिरावट (0.7‑0.5%), और विदेशी निवेश आकर्षण में कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है ।

लेकिन समझौता हो गया: निर्यात में तेजी, टेक्नोलॉजी सहयोग, भारत में निवेश वृद्धि और मैन्युफैक्चरिंग बूम की संभावना बढ़ जाएगी।

निष्कर्ष

अमेरिका-भारत व्यापारी विवाद की घड़ी अब 9 जुलाई 2025 के निर्णायक मुठभेड़ पर टिकी हुई है। यह न केवल दोनों राष्ट्रों की आर्थिक हितों का सवाल है, बल्कि एक नए वैश्विक व्यापार तंत्र की शुरुआत भी है। भारत संतुलन की राजनीति खेल रहा है, जहां वह घरेलू सेंसेटिव सेक्टर्स की रक्षा करना चाहता है, वहीं वह विदेशों में अपनी कारोबारी पहुंच भी मजबूत करना चाहता है।

यदि किसी समझौते पर सहमति बनी, तो यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक सुनहरा अवसर होगा, नया निवेश, विस्तार, तकनीकी सहयोग और निर्यात वृद्धि होगी। लेकिन यदि समझौता नहीं होता, तो भारत खर्च, बाजार पहुँच, और GDP वृद्धि में भारी गिरावट का सामना कर सकता है।

अगले कुछ सप्ताह भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति और उसकी वैश्विक भूमिका की दिशा तय करेंगे। अंतरिम समझौते की संभावनाएं न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक व्यापार के पुनर्संचालन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

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