पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अपनी सख्त व्यापार नीति के लिए सुर्खियों में हैं। ट्रंप ने ऐलान किया है कि अमेरिका 12 देशों को “टैरिफ चिट्ठियाँ” भेजने वाला है, जिनमें भारत भी शामिल है। ये चिट्ठियाँ किसी सौहार्दपूर्ण प्रस्ताव के बजाय सीधी चेतावनी हैं—या तो समझौता करो या भारी आयात शुल्क के लिए तैयार रहो। इन टैरिफ दरों को 10% से लेकर 70% तक बढ़ाया जा सकता है और ये 8 जुलाई के बाद लागू हो सकती हैं।
ट्रंप की रणनीति: सख्ती से सौदा
डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम कोई नई बात नहीं है। उनके पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने चीन, यूरोप और मेक्सिको पर इसी तरह के टैरिफ लगाए थे। उनकी रणनीति सीधी है—“पहले दबाव बनाओ, फिर बात करो।” अब उन्होंने एक बार फिर उसी पथ पर कदम रखा है, लेकिन इस बार फोकस है—ब्रिटेन, वियतनाम, भारत और कई अन्य देशों पर।
ट्रंप प्रशासन अब पारंपरिक बहुपक्षीय समझौतों की बजाय द्विपक्षीय दबाव बना रहा है। उनके मुताबिक, अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए यही सबसे कारगर रास्ता है।
भारत के लिए ये कितना गंभीर है?
भारत उन 12 देशों में शामिल है, जिन्हें ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ चिट्ठियाँ भेजने की योजना बनाई है। भारत के खिलाफ 26% तक के टैरिफ की धमकी दी गई है। यह भारत के लिए एक मुश्किल स्थिति है क्योंकि भारत अमेरिकी बाजार में कृषि, टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स और आईटी सेवाओं का एक बड़ा निर्यातक है।
भारत सरकार का रुख अब तक स्पष्ट रहा है—हम व्यापार समझौते समयसीमा देखकर नहीं बल्कि “राष्ट्रीय हित” को ध्यान में रखकर करते हैं। भारत के वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल ने हाल ही में कहा, “हम अमेरिका से व्यापार करना चाहते हैं, लेकिन अपने किसानों, डेयरी सेक्टर और छोटे व्यवसायों की कीमत पर नहीं।”
विवाद के मुख्य मुद्दे क्या हैं?
कृषि और डेयरी: अमेरिका चाहता है कि भारत अपने डेयरी और कृषि बाजार को खोल दे, जबकि भारत इसे अपने किसानों के लिए संवेदनशील मानता है।
टैरिफ दरें: भारत अमेरिका से चाहता है कि उसे भी वियतनाम या चीन जैसी राहत मिले, पर ट्रंप प्रशासन फिलहाल इसे लेकर राज़ी नहीं।
आईटी और सेवाएँ: भारत चाहता है कि अमेरिका H1B वीजा और IT सर्विसेज पर नरमी दिखाए, पर ट्रंप का ध्यान मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग पर है।
अब आगे क्या हो सकता है?
8 जुलाई की समयसीमा के बाद अगर समझौता नहीं होता, तो अमेरिका भारत सहित बाकी देशों पर टैरिफ लागू कर देगा। इसके बाद भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना महँगा और मुश्किल हो जाएगा।
हालांकि कूटनीतिक स्तर पर बातचीत अब भी जारी है। उम्मीद की जा रही है कि भारत और अमेरिका किसी “फेज-1” समझौते तक पहुँच सकते हैं, जिससे कम-से-कम मुख्य उत्पादों पर भारी टैरिफ से बचा जा सके।
निष्कर्ष: यह सिर्फ व्यापार नहीं, दबाव की राजनीति है
डोनाल्ड ट्रंप की “ले लो या छोड़ दो” टैरिफ नीति यह दिखाती है कि अमेरिका अब व्यापार को कूटनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। भारत के सामने दोहरी चुनौती है—एक ओर व्यापार संतुलन बनाए रखना, दूसरी ओर अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा करना। आने वाले कुछ हफ्ते बेहद निर्णायक होंगे।
अगर भारत दबाव में नहीं आता और समझौता भी नहीं होता, तो टैरिफ बढ़ने के बाद यह पूरी लड़ाई WTO जैसे मंचों तक जा सकती है।
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